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पहाड़ में बेकार समझे जाने वाले पिरुल को पहचान दिलाकर मंजु आर साह बन गई पीरूल वुमेन, हस्त शिल्प में बनाई एक अलग पहचान

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हाथ से बनाए गए उत्पादों के साथ मंजु आर साह
कहते हैं कि अगर आपके अंदर कुछ कर गुजरने का जुनून हो तो आप किसी भी चुनौती से लड़कर इस समाज में अपना एक अलग स्थान बना सकते हैं और आप लाखों लोगों की प्रेरणा स्रोत बन सकते हैं । उत्तराखंड की एक ऐसी ही महिला है मंजू आर शाह जिन्होंने कठिन परिस्थितियों से लड़कर आज अपनी न केवल एक अलग पहचान बनाई है बल्कि आज मंजू आर शाह उत्तराखंड की उन तमाम महिलाओं के लिए एक आदर्श है जो पहाड़ में रहकर ही कुछ करना चाहती है और कुछ बनना चाहती है।

अल्मोड़ा जिले के असो गांव की रहने वाली जनपद बागेश्वर में जन्मी मंजू आर साह बचपन से ही कुछ अलग करना चाहती थी । कपकोट इंटर कॉलेज से इंटर की परीक्षा पास करने के बाद मंजू आर साह ने स्नातक की पढ़ाई एसएसजे परिसर अल्मोड़ा से की और एम ए व्यक्तिगत रूप से समाजशास्त्र में किया । 2008 में भीमताल से B.Ed करने के बाद उनकी शादी हो गई शादी के बाद घर ग्रस्ती को संभालते हुए आर मंजू शाह ने हल्द्वानी एमबीपीजी कॉलेज से शिक्षा शास्त्र में एमए पूरा किया। B.Ed की पढ़ाई के दौरान से ही साह कुछ ऐसा करना चाह रही थी जिससे उनकी आर्थिक स्थिति भी अच्छी हो और वह समाज की उन दूसरी महिलाओं की भी सहायता कर सके जो आर्थिक रूप से कमजोर थी । इसी दौरान मंजू साह ने ठान लिया था कि वह कुछ ऐसा करेगी जो आर्थिक रूप से तो उन्हें मजबूत करेगा ही साथ ही और महिलाओं की आर्थिक स्थिति को सुधारने में भी सहायता करेगा इसके लिए उन्होने चुना उत्तराखंड के जंगलों में बड़ी तादाद में पाई जाने वाली चीड़ की सूखी पत्तियों को जिसको लोकल भाषा में पीरूल कहा जाता है।

चीड़ के सूखे पत्ते उत्तराखंड के जंगलों में आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं क्योंकि चीड़ के इन सूखे पत्तों को ना तो गाय खाती है और ना ही भैंस ना ही कोई जानवर इन पत्तों को खाता है यह पत्ते पूरी तरह से पहाड़ों में बेकार समझे जाते हैं। कुछ कर गुजरने की सोच के तहत 2010 में एक दिन की फॉर्मल ट्रेनिंग के बाद वह अपने इस अभियान में लग गई और 2018 तक लगातार नए-नए डिजाइन बनाकर पीरूल का उपयोग करती रही इस दौरान उन्होंने पीरुल से ज्वेलरी ,राखी , चेन ,अंगूठी आदि कई उत्पाद बनाकर ना केवल पिरुल को एक उपयोगी संसाधन बना दिया बल्कि हस्तशिल्प के छेत्र में भी एक नया आयाम स्थापित कर दिया। यही वजह है कि उनकी प्रशंसा आम लोगों के साथ-साथ खास लोगों ने भी की और उनके कार्य को देखते हुए 2019 में इंडिया इंटरनेशनल साइंस फेस्टिवल द्वारा बेस्ट अपकमिंग आर्टिशियन और राज्य हस्तशिल्पी प्रदर्शनी में उत्कृष्ट कलाकार सम्मान से इनको नवाज़ गया। इसके आलावा श्री अरविंदो सोसायटी द्वारा शिक्षा में शून्य निवेश नवाचार में प्रशंसा पत्र सहित न जाने कितने ही सम्मान से मंजू आर साह को अब तक सम्मानित किया जा चुका है। पिरूल में किए गए कार्य के कारण ही उनको पिरुल गर्ल के नाम से भी जाना जाता है।

मंजू आर साह ना केवल पीरूल से ही उत्पाद बनाती हैं बल्कि फिरुल के साथ-साथ न्यूज़ पेपर से सजावटी सामान, गोबर के दिए और धूप भी बनाती है । मंजू साह अब तक अपने इस काम में कई महिलाओं को भी प्रशिक्षित कर चुकी है उनके द्वारा केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग, पुस्तकालय गांव मनिगृह, कफड़ा द्वाराहाट के आजीविका समूह , चिलियानोला की आजीविका समूह के साथ ही अपने विद्यालय के अनेक छात्रों को पिरुल से उत्पाद बनाने का काम वो सीखा चुकी है और इसके अलावा शाह ऑनलाइन भी प्रशिक्षण देती हैं।

मंजू साह कहती है मेरा जीवन बहुत अभाव में बीता है इसलिए मैं चाहती हूं समाज के लिए कुछ ऐसा करू जिससे अनाथ बच्चों और बड़े , बुड़ो की मदद हो सके ताकि वह भी एक खुशहाल जीवन जी सके ।वह कहती हैं मेरे प्रेरणा स्रोत मेरे भाई श्री कैलाश गढ़िया जन शिक्षण संस्था के डायरेक्टर डॉक्टर जितेंद्र तिवारी ,डॉक्टर विनीत चौधरी ,प्रसिद्ध लेखक श्री अशोक पांडे ,संवाददाता गौरीशंकर कांडपाल ,आईसीआर पंतनगर की साइंटिस्ट डॉक्टर राजेंद्र पंडरिया ,न्यूज़ 18 के रिपोर्टर श्री विपिन पुजारी जी ,श्री मोहन शर्मा जी जितेंद्र बोरा जी, चंद्रशेखर भट्ट जी ,मयंक मैनाली जी ,मयंक शर्मा जी नंदन सिंह रावत जी,ओपी डिमरी और अर्जुन सिंह रावत जी , राजेंद्र पड़लिया जी ,विनीता चौधरी जी जैसी अनेक लोग हैं जिनके द्वारा मुझे हमेशा मोरल सपोर्ट मिला है साथ ही वह कहती हैं इस बार मेरे द्वारा प्रशिक्षित सभी प्रशिक्षणार्थियों द्वारा राखी बनाकर माननीय मुख्यमंत्री जी की पत्नी गीता धामी जी को भेजी गई है। आप की सोच को मुद्दा टीवी का सलाम।

मुद्दा टीवी ख़बर, देहरादून

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